Sunday, September 8, 2013

टूटी फूटी शायरी

1
बिकाऊ है मगर कोई खरीरदार नहीं मिलता
मुसीबत में कोई मददगार नहीं मिलता ।

एक हम है जो तुझपर जान छिड़कते है
बड़े शहरो में ऐसा यार नही मिलता |

2
वो मेरे करीब भी है और दूर भी
हमेशा सोचता हूँ  रुबरु सामना कब होगा ।

उसे देखते ही जो चाँद याद आ गया था
अब उस चेहरे का दीदार कब होगा |
बहुत दिन हो गए किराये रहते हुए ए चन्दन
इस शहर में तेरा मकान कब होगा ।

3

शायद किस्मत को यही मंजूर था पर मुझे मंजूर न था
बड़ा कर हौसला जब मै आगे बड़ा किस्मत ने अपना रुख बदल लिया






Sunday, July 21, 2013

पहली ग़ज़ल

सर्द रंग चेहरे का अच्छा नहीं लगता
पास  रहकर भी दूर रहना अच्छा नहीं लगता ।

आप सियासतकार है आपका रुतबा ही है बेमिसाल
आप मिटटी की बात मत कीजिये अच्छा नहीं लगता ।

आपकी एक बयां से किसी का दिल दुखता होगा
हर बात पे सियासत मत कीजिये अच्छा नहीं लगता ।

आज मेरा दुश्मन हुआ पर कल तक वो दोस्त था मेरा
उसके हर राज का खुलासा कर दूँ अच्छा नहीं लगता ।

चलो ठीक ही हुआ किसी कसती को किनारा तो मिला
शायद मेरा नाम उनके हथेली पे अच्छा नही लगता ।

मै कातिल भी हू और तेरा गुन्हेगार भी
बेवजह उसे बदनाम मत किजीये अच्छा नही लगता।

मै देख कर आया हु इस शहर की ऊँची इमारते
अब जब उस बस्ती से गुजरता हूँ तो अच्छा नहीं लगता ।

मेरी बहने नहीं हैं इसलिए शायद
यह त्यौहार राखी का मुझे अच्छा नहीं लगता ।